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सदभाव था रोशन
इस मीठे शहर में
ये कौन यहॉं बो गया
दुःख-दर्द के रोपे
कौन इसे दे गया
नफ़रत के ये तोहफ़े
फूटे अब करुणा की नदी
इसकी नज़र से
अब और नहीं रोना इसे
मनहूस ख़बर से
ये व़क़्त है आओ
मिलजुल के विचारें
शांति से चलो आज
हमदर्दी उचारें
ग़ालिब की ग़ज़ल
तुलसी की चौपाई उधर से
हर एक डगर से
हर एक अधर से
इस मीठे शहर में
सदभाव हो रोशन-
नईदुनिया में प्रकाशित वरिष्ठ कवि श्री नरहरि पटेल की ताज़ा कविता.
सारे चैनल देख लियेसारे अख़बार पढ़ लियेरिश्तेदारों से भारत भर में बातें हो गईंपडौसी से अबोला थावह भी टूट गया
जो न पढ़ने थे वे चिट्ठे भी पढ़ लियेगली में क्रिकेट भी हो गयादाल-चावल भी खा लिये कई बारराजनीति भी हो लीऔर ख़ून की होलीसारे शगुन तो हो गएकर्फ़्यू भी चल गया दिन रातसियासत की बिछी बिसातअब थोड़ी हवा आने दो न
नसीब से मिलता है
किसी शहर को अमन
नसीब से मिलती है धूप
गली मोहल्ले की रौनक़े
बच्चों की आवाज़ें,शोर
नसीब से मिलता है
दरवाज़े पर दूध
अख़बार और सब्ज़ियाँ
मिलते हैं नसीब से पास-पडौस
सोहबतें और ठहाके
नसीब से मिलता है
विश्वास,अपनापन और हँसी
नसीब से ही मिलते हैं
भाईचारे और जज़बात
नसीब से ही मिलता है
किसी शहर को इत्मीनान
सुक़ून की पहचान
और ज़िन्दगी बख़्शते अवाम
तो जो मिल गया है नसीब से
उसे मत गँवाइये
अपने शहर को उसकी पहचान दिलवाइये
उसे फ़िर रफ़्तार पर लाइये
रोकिये मत उसके स्पंदन को
आप ही को करना पड़ेगा ये सब
हाँ , करना ही पड़ेगा
क्योंकि कुछ काम नसीब के भरोसे
नहीं छोड़े जा सकते
उसके लिये कीजिये कुछ ऐसी जुम्बिश
कि दुनिया कहे इसी का नाम तो
है ज़िन्दादिली
शहर की ज़िन्दादिली उसमें
रहने वाले लोगों से होती है
वह आप से होती है
लोग जानते हैं
आप ज़िन्दादिल हैं.
झुलस रहा मेरा शहरकोई चाह रहा है करो इसे बंदकोई चाह रहा है खुला रहे येग़रीब कुलबुला रहा है महंगाई मेंअमीर मना रहा है पिकनिकउसे मिल गया है सप्ताहांत का एक बहानाकेसरिया ने कहा करो बंदहरा कहेगा अब करो बंदरंगो में बटा मेरा शहरअमन पसंद हैइसकी तहज़ीब मेंअमीर ख़ाँ की तानऔर विष्णु चिंचालकर के रंग हैंमैडम पद्मनाभन का है संस्कारइसके स्वाद में है जलेबी-पोहे की चटख़ारलौट आएगा ये शहर जल्द ही रूठे बेटे की तरहसुबह का भूला जो ठहराअभी कहाँ गूँजी है पूरी तरह से स्कूल मेंजा रहे नये बच्चों की किलकारियाँअभी कहाँ महकी है बारिश की बूँदये तो शहर है शानदार रिवायतों काभूला देता है ज़ख़्म , लगा देता है मरहमये शहर है अरमानों काजज़बातों कानेक इरादों कामुझे इस पर नाज़ हैये सिर्फ़ एक शहर नहींइंसानियत की आवाज़ है