Tuesday, July 8, 2008

इस मीठे शहर में…सदभाव हो रोशन

सदभाव था रोशन
इस मीठे शहर में
ये कौन यहॉं बो गया
दुःख-दर्द के रोपे
कौन इसे दे गया
नफ़रत के ये तोहफ़े
फूटे अब करुणा की नदी
इसकी नज़र से
अब और नहीं रोना इसे
मनहूस ख़बर से
ये व़क़्त है आओ
मिलजुल के विचारें
शांति से चलो आज
हमदर्दी उचारें
ग़ालिब की ग़ज़ल
तुलसी की चौपाई उधर से
हर एक डगर से
हर एक अधर से
इस मीठे शहर में
सदभाव हो रोशन


-नईदुनिया में प्रकाशित वरिष्ठ कवि श्री नरहरि पटेल की ताज़ा कविता.

Sunday, July 6, 2008

कर्फ़्यू के बाद थोड़ी हवा भी आने दो !

सारे चैनल देख लिये
सारे अख़बार पढ़ लिये
रिश्तेदारों से भारत भर
में बातें हो गईं
पडौसी से अबोला था
वह भी टूट गया
जो न पढ़ने थे

वे चिट्ठे भी पढ़ लिये
गली में क्रिकेट भी हो गया
दाल-चावल भी खा लिये कई बार
राजनीति भी हो ली
और ख़ून की होली
सारे शगुन तो हो गए
कर्फ़्यू भी चल गया दिन रात
सियासत की बिछी बिसात
अब थोड़ी हवा आने दो न

Friday, July 4, 2008

कर्फ़्यू के साये में ख़ामोश मेरे शहर से एक इल्तिजा !

नसीब से मिलता है
किसी शहर को अमन
नसीब से मिलती है धूप
गली मोहल्ले की रौनक़े
बच्चों की आवाज़ें,शोर

नसीब से मिलता है
दरवाज़े पर दूध
अख़बार और सब्ज़ियाँ
मिलते हैं नसीब से पास-पडौस
सोहबतें और ठहाके

नसीब से मिलता है
विश्वास,अपनापन और हँसी
नसीब से ही मिलते हैं
भाईचारे और जज़बात

नसीब से ही मिलता है
किसी शहर को इत्मीनान
सुक़ून की पहचान
और ज़िन्दगी बख़्शते अवाम

तो जो मिल गया है नसीब से
उसे मत गँवाइये
अपने शहर को उसकी पहचान दिलवाइये
उसे फ़िर रफ़्तार पर लाइये
रोकिये मत उसके स्पंदन को
आप ही को करना पड़ेगा ये सब
हाँ , करना ही पड़ेगा
क्योंकि कुछ काम नसीब के भरोसे
नहीं छोड़े जा सकते
उसके लिये कीजिये कुछ ऐसी जुम्बिश
कि दुनिया कहे इसी का नाम तो
है ज़िन्दादिली
शहर की ज़िन्दादिली उसमें
रहने वाले लोगों से होती है
वह आप से होती है
लोग जानते हैं
आप ज़िन्दादिल हैं.

ये सिर्फ़ एक शहर नहीं ; इंसानियत की आवाज़ है !

झुलस रहा मेरा शहर
कोई चाह रहा है करो इसे बंद
कोई चाह रहा है खुला रहे ये
ग़रीब कुलबुला रहा है महंगाई में
अमीर मना रहा है पिकनिक
उसे मिल गया है सप्ताहांत का एक बहाना
केसरिया ने कहा करो बंद
हरा कहेगा अब करो बंद
रंगो में बटा मेरा शहर
अमन पसंद है
इसकी तहज़ीब में
अमीर ख़ाँ की तान
और विष्णु चिंचालकर के रंग हैं
मैडम पद्मनाभन का है संस्कार
इसके स्वाद में है जलेबी-पोहे की चटख़ार
लौट आएगा ये शहर जल्द ही रूठे बेटे की तरह
सुबह का भूला जो ठहरा
अभी कहाँ गूँजी है पूरी तरह से स्कूल में
जा रहे नये बच्चों की किलकारियाँ
अभी कहाँ महकी है बारिश की बूँद
ये तो शहर है शानदार रिवायतों का
भूला देता है ज़ख़्म , लगा देता है मरहम
ये शहर है अरमानों का
जज़बातों का
नेक इरादों का
मुझे इस पर नाज़ है
ये सिर्फ़ एक शहर नहीं
इंसानियत की आवाज़ है