Friday, July 4, 2008

कर्फ़्यू के साये में ख़ामोश मेरे शहर से एक इल्तिजा !

नसीब से मिलता है
किसी शहर को अमन
नसीब से मिलती है धूप
गली मोहल्ले की रौनक़े
बच्चों की आवाज़ें,शोर

नसीब से मिलता है
दरवाज़े पर दूध
अख़बार और सब्ज़ियाँ
मिलते हैं नसीब से पास-पडौस
सोहबतें और ठहाके

नसीब से मिलता है
विश्वास,अपनापन और हँसी
नसीब से ही मिलते हैं
भाईचारे और जज़बात

नसीब से ही मिलता है
किसी शहर को इत्मीनान
सुक़ून की पहचान
और ज़िन्दगी बख़्शते अवाम

तो जो मिल गया है नसीब से
उसे मत गँवाइये
अपने शहर को उसकी पहचान दिलवाइये
उसे फ़िर रफ़्तार पर लाइये
रोकिये मत उसके स्पंदन को
आप ही को करना पड़ेगा ये सब
हाँ , करना ही पड़ेगा
क्योंकि कुछ काम नसीब के भरोसे
नहीं छोड़े जा सकते
उसके लिये कीजिये कुछ ऐसी जुम्बिश
कि दुनिया कहे इसी का नाम तो
है ज़िन्दादिली
शहर की ज़िन्दादिली उसमें
रहने वाले लोगों से होती है
वह आप से होती है
लोग जानते हैं
आप ज़िन्दादिल हैं.

8 comments:

Manish Kumar said...

आपकी बातें किसी भी शहर के बाशिंदों के लिए सही हैं। सब कुछ नसीब पर नहीं छोड़ा जा सकता कुछ तो हमें भी करना होगा..

Uday Prakash said...

शब्दों मे आपकी यह प्रार्थना किसी शीतल वर्षा की तरह विद्वेष की लपटों को तुरत बुझा दे.
इंदौर की स्थितियों से हम सब चिंतित हैं!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

क्या क्या देखा वहाँ बँद है उस समय ौसके बारे मेँ भी लिखियेगा सँजय भाई ...
मेरी सद्`भाव्नाएँ आपके शहर और सारे हिन्दुस्तान के साथ सदैव जुडी रहेँगीँ !
-लावण्या

Dr. Chandra Kumar Jain said...

और नसीब से मिलती है
अमन के नाम पर
ऐसी दर्द भरी पुकार.... !
और
इसे सुन पाना, बड़े नसीब
वालों को ही नसीब होता है.
=====================
आभार इस पुकार के लिए.
चन्द्रकुमार

दिनेशराय द्विवेदी said...

सब के सब
बनाइए एक पोस्टर
निकलिए घर से बाहर
चिपकाइए शहर की दीवार पर
टूट जाएगा आतंक

मीनाक्षी said...

शहर की ज़िन्दादिली उसमें
रहने वाले लोगों से होती है--- बहुत सच बात कह दी...

anurag vats said...

aapne theek likha hai : नसीब से मिलता है
विश्वास,अपनापन और हँसी
नसीब से ही मिलते हैं
भाईचारे और जज़बात
kuch log na jane kyon in nematon ki kdr krna nhi jante...indaure men sabkuch jald samanya ho jayega...bharosa rakhiyega...

राकेश जैन said...

ji , hum zurur apne shahar ke aman ko kayam rakhne me apni samrthya anurup shabdanjali dete rahenge, hum jaldi hi recover kar lenge, Vande- Matram !!