सारे चैनल देख लिये
सारे अख़बार पढ़ लिये
रिश्तेदारों से भारत भर
में बातें हो गईं
पडौसी से अबोला था
वह भी टूट गया
जो न पढ़ने थे
वे चिट्ठे भी पढ़ लिये
गली में क्रिकेट भी हो गया
दाल-चावल भी खा लिये कई बार
राजनीति भी हो ली
और ख़ून की होली
सारे शगुन तो हो गए
कर्फ़्यू भी चल गया दिन रात
सियासत की बिछी बिसात
अब थोड़ी हवा आने दो न
चार साल के बाद अपने प्रिय ठिकाने पर !
8 years ago
6 comments:
sach kaha aapne,,, man baichain ho gaya, ab pata chalaa sirf ghar nahi shahar kitna aham hota hai zindagi men...
जी राकेश भाई
ठीक कहा आपने.
धन्यवाद.
aap sahi kah rahe hai sir ab ham indori ghar main bachan ho rahe hai apne sahar main gumne ke leye or thak gaye hai apne ghar main kad ho kar isliye ab thodi hawa aane do plzzzzzzz.
Thanks.
संजय जी
आपने अपनी कविता में जो पीड़ा व्यक्त की है उसे समझा जा सकता है। वाकई जो हो रहा है वह दुखद है।
मैं आपसे कहना चाहता था कि आप posted by में अपना नाम क्यों नहीं लिखते। प्रोफाईल में जाकर प्रदर्शित नाम में अपना नाम भर दीजिये। आपके ब्लाग का नाम तो इंदौरनामा है ही। इससे थोड़ा भ्रम होता है। अगर आपने यह सोद्देश्य भरा है तो अपनी राय के लिये मुझे खेद है। मैंने आपका नाम ईमेल से जाना।
दीपक भारतदीप
ek achchhi kavita ke liye badhai...
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